सूरह अल-मर्सलात (संदेशवाहक) سُورَة المرسلات

सूरह अल-मर्सलात क़ुरआन की सत्ताहत्तरवीं सूरह है, जो मक्का में अवतरित हुई। इसमें 50 आयतें हैं और इसमें क़यामत के दिन और अल्लाह के संदेशों के बारे में चर्चा की गई है।

अनुवाद: सूरह अल-मुरसिलात (भेजे गए) سُورَة المرسلات

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

i

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।

وَالْمُرْسَلَاتِ عُرْفًا ١ i

साक्षी है वे (हवाएँ) जिनकी चोटी छोड़ दी जाती है (१)

فَالْعَاصِفَاتِ عَصْفًا ٢ i

फिर ख़ूब तेज़ हो जाती है, (२)

وَالنَّاشِرَاتِ نَشْرًا ٣ i

और (बादलों को) उठाकर फैलाती है, (३)

فَالْفَارِقَاتِ فَرْقًا ٤ i

फिर मामला करती है अलग-अलग, (४)

فَالْمُلْقِيَاتِ ذِكْرًا ٥ i

फिर पेश करती है याददिहानी (५)

عُذْرًا أَوْ نُذْرًا ٦ i

इल्ज़ाम उतारने या चेतावनी देने के लिए, (६)

إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَاقِعٌ ٧ i

निस्संदेह जिसका वादा तुमसे किया जा रहा है वह निश्चित ही घटित होकर रहेगा (७)

فَإِذَا النُّجُومُ طُمِسَتْ ٨ i

अतः जब तारे विलुप्त (प्रकाशहीन) हो जाएँगे, (८)

وَإِذَا السَّمَاءُ فُرِجَتْ ٩ i

और जब आकाश फट जाएगा (९)

وَإِذَا الْجِبَالُ نُسِفَتْ ١٠ i

और पहाड़ चूर्ण-विचूर्ण होकर बिखर जाएँगे; (१०)

وَإِذَا الرُّسُلُ أُقِّتَتْ ١١ i

और जब रसूलों का हाल यह होगा कि उन का समय नियत कर दिया गया होगा - (११)

لِأَيِّ يَوْمٍ أُجِّلَتْ ١٢ i

किस दिन के लिए वे टाले गए है? (१२)

لِيَوْمِ الْفَصْلِ ١٣ i

फ़ैसले के दिन के लिए (१३)

وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الْفَصْلِ ١٤ i

और तुम्हें क्या मालूम कि वह फ़ैसले का दिन क्या है? - (१४)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ١٥ i

तबाही है उस दिन झूठलाने-वालों की! (१५)

أَلَمْ نُهْلِكِ الْأَوَّلِينَ ١٦ i

क्या ऐसा नहीं हुआ कि हमने पहलों को विनष्ट किया? (१६)

ثُمَّ نُتْبِعُهُمُ الْآخِرِينَ ١٧ i

फिर उन्हीं के पीछे बादवालों को भी लगाते रहे? (१७)

كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ ١٨ i

अपराधियों के साथ हम ऐसा ही करते है (१८)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ١٩ i

तबाही है उस दिन झुठलानेवालो की! (१९)

أَلَمْ نَخْلُقْكُمْ مِنْ مَاءٍ مَهِينٍ ٢٠ i

क्या ऐस नहीं है कि हमने तुम्हे तुच्छ जल से पैदा किया, (२०)

فَجَعَلْنَاهُ فِي قَرَارٍ مَكِينٍ ٢١ i

फिर हमने उसे एक सुरक्षित टिकने की जगह रखा, (२१)

إِلَىٰ قَدَرٍ مَعْلُومٍ ٢٢ i

एक ज्ञात और निश्चित अवधि तक? (२२)

فَقَدَرْنَا فَنِعْمَ الْقَادِرُونَ ٢٣ i

फिर हमने अन्दाजा ठहराया, तो हम क्या ही अच्छा अन्दाज़ा ठहरानेवाले है (२३)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٢٤ i

तबाही है उस दिन झूठलानेवालों की! (२४)

أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ كِفَاتًا ٢٥ i

क्या ऐसा नहीं है कि हमने धरती को समेट रखनेवाली बनाया, (२५)

أَحْيَاءً وَأَمْوَاتًا ٢٦ i

ज़िन्दों को भी और मुर्दों को भी, (२६)

وَجَعَلْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ شَامِخَاتٍ وَأَسْقَيْنَاكُمْ مَاءً فُرَاتًا ٢٧ i

और उसमें ऊँचे-ऊँचे पहाड़ जमाए और तुम्हें मीठा पानी पिलाया? (२७)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٢٨ i

तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की! (२८)

انْطَلِقُوا إِلَىٰ مَا كُنْتُمْ بِهِ تُكَذِّبُونَ ٢٩ i

चलो उस चीज़ की ओर जिसे तुम झुठलाते रहे हो! (२९)

انْطَلِقُوا إِلَىٰ ظِلٍّ ذِي ثَلَاثِ شُعَبٍ ٣٠ i

चलो तीन शाखाओंवाली छाया की ओर, (३०)

لَا ظَلِيلٍ وَلَا يُغْنِي مِنَ اللَّهَبِ ٣١ i

जिसमें न छाँव है और न वह अग्नि-ज्वाला से बचा सकती है (३१)

إِنَّهَا تَرْمِي بِشَرَرٍ كَالْقَصْرِ ٣٢ i

निस्संदेह वे (ज्वालाएँ) महल जैसी (ऊँची) चिंगारियाँ फेंकती है (३२)

كَأَنَّهُ جِمَالَتٌ صُفْرٌ ٣٣ i

मानो वे पीले ऊँट हैं! (३३)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٣٤ i

तबाही है उस झुठलानेवालों की! (३४)

هَٰذَا يَوْمُ لَا يَنْطِقُونَ ٣٥ i

यह वह दिन है कि वे कुछ बोल नहीं रहे है, (३५)

وَلَا يُؤْذَنُ لَهُمْ فَيَعْتَذِرُونَ ٣٦ i

तो कोई उज़ पेश करें, (बात यह है कि) उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है (३६)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٣٧ i

तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की (३७)

هَٰذَا يَوْمُ الْفَصْلِ ۖ جَمَعْنَاكُمْ وَالْأَوَّلِينَ ٣٨ i

"यह फ़ैसले का दिन है, हमने तुम्हें भी और पहलों को भी इकट्ठा कर दिया (३८)

فَإِنْ كَانَ لَكُمْ كَيْدٌ فَكِيدُونِ ٣٩ i

"अब यदि तुम्हारे पास कोई चाल है तो मेरे विरुद्ध चलो।" (३९)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٤٠ i

तबाही है उस दिन झुठलानेवालो की! (४०)

إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي ظِلَالٍ وَعُيُونٍ ٤١ i

निस्संदेह डर रखनेवाले छाँवों और स्रोतों में है, (४१)

وَفَوَاكِهَ مِمَّا يَشْتَهُونَ ٤٢ i

और उन फलों के बीच जो वे चाहे (४२)

كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ ٤٣ i

"खाओ-पियो मज़े से, उस कर्मों के बदले में जो तुम करते रहे हो।" (४३)

إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ ٤٤ i

निश्चय ही उत्तमकारों को हम ऐसा ही बदला देते है (४४)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٤٥ i

तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की! (४५)

كُلُوا وَتَمَتَّعُوا قَلِيلًا إِنَّكُمْ مُجْرِمُونَ ٤٦ i

"खा लो और मज़े कर लो थोड़ा-सा, वास्तव में तुम अपराधी हो!" (४६)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٤٧ i

तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की! (४७)

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ارْكَعُوا لَا يَرْكَعُونَ ٤٨ i

जब उनसे कहा जाता है कि "झुको! तो नहीं झुकते।" (४८)

وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ ٤٩ i

तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की! (४९)

فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَهُ يُؤْمِنُونَ ٥٠ i

अब आख़िर इसके पश्चात किस वाणी पर वे ईमान लाएँगे? (५०)